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Monday, July 5, 2010

Netaji ki jay

महंगाई की चिंता मे घुलते राजनेता

मनोज कुमार

महंगाई की आग केन्द्र सरकार की लगायी हुई है तो उसमें घी डालने का काम विपक्षी राजनीतिक दलों ने किया है। महंगाई की मार से जूझते आम आदमी को रोज रोज किलकिल करना पड़ रही है। एक एक खर्चे में कटौती करनी होती है तब कहीं जाकर घर का खर्च चल पाता है। ऐसे में विपक्षी राजनीतिक दलों ने महंगाई के विरोध में एक पूरा दिन काम धाम चौपट कर दिया। महंगाई का विरोध किया जाना चाहिए किन्तु यह ढंग महंगाई को नियंत्रित करने के बजाय बढ़ाती ही है। मीडिया ने इस बंद के परिप्रेक्ष्य में व्यापक पड़ताल की तो कई जगहों से खबरें आयी कि अनेक घरो में चूल्हे नहीं जले। जले भी तो कहां से? दिहाड़ी मजदूरों को मजदूरी नहीं मिली तो राशन का इंतजाम कहां से हो और जब राशन का इंतजाम नहीं होगा तो चूल्हे कैसे जलेंगे। महंगाई बढ़ाने वाले और उसका विरोध करने वाला कोई नेता यह तो बताये कि उसके घर में कब चूल्हा नहीं जला। एसी कमरे और एसी कार में बैठकर बातें करना आसान है लेकिन रोज रोज मर कर जीते लोगों की तकलीफ का अंदाजा इनमें से किसी को नहीं है। संसद और विधानसभा सरकार नीतियों और कामों की आलोचना करने, विरोध करने के लिये बना है फिर देश का उत्पादन प्रभावित करने की जरूरत क्या और क्यों है? भारी भरकम बजट से चलने वाले इन सदनों में आम आदमी की बात रखने के लिये ही तो जनप्रतिनिधियों का चयन किया जाता है फिर भला उन्हें सड़क पर उतरने की जरूरत क्यों है। एकबारगी मान भी लें कि ऐसा करके वे सरकार पर दबाव बनाना चाहते हैं तो कोई ये बताये कि किस चीज की कीमत सस्ती हुई है। मैं अर्थशास्त्री तो नहीं हूं लेकिन एक बात दावे के साथ कह सकता हूं कि एक दिन के बंद से जो आर्थिक नुकसान हुआ है, उसकी क्षतिपूर्ति के लिये फिर कीमतों में बढ़ोत्तरी कर दी जाएंगी। विरोध का तरीका यह ठीक नहीं है। जापान में विरोध होता है तो आम आदमी को और अधिक काम करना होता है और हमारे यहां विरोध का मतलब काम ठप करना है। लाखों करोड़ों रुपये राजस्व की जो हानि हुई है, उसे कौन भरेगा। राजनीतिक दलों को आम आदमी की इतनी ही चिंता है तो अपने वेतन भत्ते को लेने से इंकार कर देना चाहिए किन्तु इस मामले में सब दल एक हैं। अभी चर्चा सांसदों के वेतन भत्ते बढ़ाने की चल रही है और इस मामले में सब दल एकजुट हैं। दशमल शून्य प्रतिशत राजनेताओं को छोड़ दें तो लगभग सभी नेता मालदार हैं और उन्हें वेतन भत्ते की जरूरत नहीं है। मेरा मानना है कि आम आदमी को इन नेताओं के वेतन भत्ते के खिलाफ रोष जाहिर करना चाहिए। महंगाई की चिंता मे घुलते राजनेता कभी इस पर विचार करेंगे, ऐसे वक्त का देश की जनता को इंतजार रहेगा।

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