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Wednesday, June 30, 2010

मीडिया और महिलाये


लीडरशीप की नयी परिभाषा गढ़ती ग्रामीण महिलाएं

मनोज कुमार

ध्यप्रदेश में पंचायतीराज के डेढ़ दशक बाद महिला लीडर अब पूरी तरह से चुनौतियों का सामना करने के लिये तैयार दिख रही है। अनेक किस्म की दिक्कतों के बीच वे अपने लिये राह बना रही हैं। सत्ता पाने के बाद उन्हें सरूर (सत्ता का नशा) नहीं हुआ बल्कि सत्ता से वे सत (सच) का रास्ता बना रही हैं। यह स्थिति राज्य के दूरदराज झाबुआ से लेकर मंडला तक के ग्राम पंचायतों में है तो राजधानी भोपाल के आसपास स्थित गांवों की महिला लीडरों का काम अद्भुत है। ये महिलाएं कभी चुनौतियों को देखकर घबरा जाती थीं तो अब चुनौतियों का सामना करने के लिये ये तैयार दिख रही हैं। पंचायतीराज का पूरा का पूरा परिदृश्य बदला बदला दिखायी देने लगा है। कभी गांवों में महिलाओं के नाम पर पुरूषों की सत्ता हुआ करती थी और परिवार वालों का दखल था, अब वहां सिर्फ और सिर्फ महिलाआंे का राज है। वे चुनी जाती हैं, राज करती हैं और समस्याआंे से जूझती हुई गांव के विकास का रास्ता तय करती हैं। किरण बाई आदिवासी महिला है। वह तेंदूखेड़ा में रहती है। इस बार के चुनाव में वह बाबई चिचली जनपद की अध्यक्ष चुनी गयीं। तेंदूखेड़ा और बाबई चिचली के बीच की दूरी लगभग तेरह किलोमीटर है। जनपद अध्यक्ष होने के नाते उन्हें नियमानुसार वाहन की सुविधा मिलनी चाहिए लेकिन ऐसा नहीं हो पा रहा है। जनपद अध्यक्ष होने के नाते किरण बाई ने जनपद पंचायत के सीईओ से इसी साल 2010 के अप्रेल महीने में वाहन देने का अनुरोध किया तो उन्हें किराये पर वाहन लेने की अनुमति दी गई। किरण बाई को लगा कि उनकी मुसीबत खत्म हो गई और वे अपने काम को इत्मीनान के साथ पूरा कर सकेंगी लेकिन उन्हें इस बात का इल्म नहीं था कि अभी उनकी मुसीबत खत्म नहींं हुई है। सीईओ के आदेश पर वाहन किराये पर लिया और अपना काम निपटाने निकल पड़ी। महीना खत्म होते होते जब किरणबाई ने भुगतान के लिये बिल प्रस्तुत किया तो उसे किनारे कर दिया गया और कहा गया कि अभी राशि नहीं है। जनपद अध्यक्ष के लिये अब दोहरी मुसीबत है। पहले तो गाड़ी नहीं थी, अब उधारी उनके मत्थे चढ़ गयी है। सीईओ कहते हैं कि उनके पास ही गाड़ी नहीं है तो जनपद अध्यक्ष को कहां से गाड़ी की सुविधा दें लेकिन पंचायत कानून में साफतौर पर प्रावधान है कि जनपद अध्यक्ष को वाहन सुविधा उपलब्ध करायी जाए। बाबई चिचली जनपद की अध्यक्ष किरण बाई के हौसले को सीईओ की इस बेरूखी से कोई फर्क नहीं पड़ा। वह अपने पति के साथ रोज तेरह किलोमीटर का सफर सायकल से तय कर जनपद मुख्यालय जाती हैं। दिन भर काम निपटाने के बाद वह वापस अपने पति के साथ घर लौट आती हैं। अपने जीवनसाथी के इस सहयोग से जहां किरण बाई के हौसलों को नयी ऊंचाई मिली है। किरणबाई एक मिसाल है उन महिलाओं के लिये जो सुविधाओं के अभाव में अपना काम नहीं कर पाती हैं या दिक्कतों का रोना रोते हुए समय गंवा देती हैं। किरणबाई सुविधा नहीं मिलने से दुखी हैं लेकिन निराश नहीं। वे अपना दायित्व समझती हैं और उसे पूरा करने के लिये आगे आ रही हैं। किरणबाई राज्य की पंचायतों की अकेली लीडर नहीं है बल्कि ऐसे अनेक गुमनाम महिला लीडर हैं जो इसी साहस और ताकत के साथ सत्ता की बागडोर सम्हाले हुए हैं। इन महिला लीडरों को समाज सलाम करता है। मध्यप्रदेश में स्त्री ग्रामीण सत्ता के प्रति पुरूषों में भी भाव बदला है। अब उन्हांेंने किनारा कर लिया है और इसका प्रमाण यह है कि राज्य के अनेक पंचायतों में सौफीसदी सत्ता महिलाओं की बन गयी है। पचास फीसदी आरक्षण के कारण और पचास फीसदी स्वयं पुरूषों द्वारा सत्ता छोड़ने के कारण। हालांकि अभी इसका प्रतिशत कम है लेकिन उम्मीद की एक किरण जागी है। महिला लीडरों के लिये चुनौतियां कम नहीं हुई है। अनेक ऐसे उदाहरण मिले हैं जहां पंचायतोंे में महिला लीडरों को उनके बुनियादी अधिकार एवं सुविधाओं से वंचित रखा गया है। नियमों का हवाला, आर्थिक तंगी और अपरोक्ष रूप महिला लीडर को परेशान करने की मंशा के चलते रोज नयी चुनौतियां दी जा रही हैं। इन चुनौतियों से महिला लीडर परेशान होने के बजाय रोज नयी इबारत लिख रही हैं।

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